बेबाक चर्चा
लखनऊ: एक तरफ उत्तर प्रदेश के बिजली निगमों को लगातार घाटे में बताकर उनके निजीकरण की तैयारी चल रही है, वहीं दूसरी तरफ एक **चौंकाने वाला खुलासा** हुआ है। बिजली निगमों ने मिलकर एक निजी संस्था **’ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोसिएशन’** की सदस्यता लेने और चंदा देने में **1.30 करोड़ रुपये** फूंक दिए हैं। इस मामले ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है और इसे एक **मेगा घोटाला** बताया जा रहा है।
### आखिर क्यों दिया गया ये ‘मोटा चंदा’?
यह मामला तब सामने आया जब उपभोक्ता परिषद को पता चला कि घाटे में चल रहे इन सरकारी निगमों ने लाखों रुपये एक निजी संगठन को दान कर दिए हैं। जानकारी के मुताबिक, पावर कॉर्पोरेशन ने अकेले 21.80 लाख रुपये दिए हैं, और इसके अलावा पूर्वांचल, दक्षिणांचल, पश्चिमांचल, मध्यांचल और केस्को ने भी इसी तरह से भुगतान किया है। हैरानी की बात यह है कि इस भुगतान के लिए नियामक आयोग से कोई अनुमति नहीं ली गई।
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने इसे बड़ा घोटाला बताते हुए नियामक आयोग में याचिका दाखिल की है और **सीबीआई जांच** की मांग की है। वर्मा ने सवाल उठाया है कि जो निगम घाटे में चल रहे हैं, वे बिना अनुमति के इतना बड़ा भुगतान कैसे कर सकते हैं?
### क्या चुनावों से पहले होगा ‘निजीकरण’?
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने भी इस मुद्दे पर मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। समिति का आरोप है कि इस एसोसिएशन के पीछे बड़े कॉर्पोरेट घराने हैं और इसका मकसद बिजली निगमों का निजीकरण कर उन्हें फायदा पहुंचाना है।
संघर्ष समिति ने यह भी सवाल उठाया है कि जब घाटे की दलील देकर निजीकरण की तैयारी हो रही है, तो निजी संस्थाओं को करोड़ों का चंदा क्यों दिया जा रहा है? उन्होंने कहा कि इस तरह के खर्च का बोझ आखिर में आम उपभोक्ताओं पर ही डाला जाएगा, जो कि **पूरी तरह से अनैतिक** है।
क्या यह 1.30 करोड़ का भुगतान वास्तव में एक घोटाला है? क्या इसके पीछे बिजली निगमों के निजीकरण की कोई बड़ी साजिश है? इन सवालों का जवाब तो जांच के बाद ही मिलेगा। फिलहाल, यह मामला एक बड़े विवाद में तब्दील हो चुका है, जिसने उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी हलचल मचा दी है।