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गैरसैंण। भारी बारिश और प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद, उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में चार दिवसीय विधानसभा मानसून सत्र आज से शुरू हो रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार अपने इस फैसले पर अडिग रही, जिसने आपदा की स्थिति में भी पहाड़ की राजधानी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया है। हालांकि, इस फैसले को लेकर अधिकारियों और विधायकों में थोड़ी असहजता देखी गई थी, क्योंकि लगातार हो रही बारिश और भूस्खलन ने यात्रा को बेहद जोखिम भरा बना दिया था।
सत्र देहरादून में कराने की थी अटकलें
राज्य में लगातार हो रही बारिश और जगह-जगह हो रहे भूस्खलन से देहरादून से गैरसैंण तक का 260 किमी का सफर काफी मुश्किल हो गया था। इसी वजह से सरकारी मशीनरी और कई विधायक इस सत्र को देहरादून में ही कराने की उम्मीद लगाए बैठे थे। विशेष रूप से, फरवरी 2025 में बजट सत्र देहरादून में ही आयोजित किया गया था, जिस पर विपक्ष ने गैरसैंण की उपेक्षा का आरोप लगाया था। उस समय, विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने सदन के डिजिटाइजेशन और साउंड सिस्टम के चल रहे काम का हवाला देते हुए बजट सत्र को गैरसैंण में आयोजित करना संभव नहीं बताया था।
मानसून सत्र का निर्णय और चुनौतियां
बजट सत्र गैरसैंण में न हो पाने के बाद, सरकार ने मानसून सत्र को ग्रीष्मकालीन राजधानी में ही आयोजित करने का निर्णय लिया। सरकार को उम्मीद थी कि 15 अगस्त के बाद मानसून कमजोर पड़ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बजाय, उत्तरकाशी के धराली और हर्षिल, और पौड़ी के सैंजी जैसे इलाकों में भूस्खलन और बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। इन परिस्थितियों में, गैरसैंण में सत्र कराने का फैसला एक बड़ा जोखिम लग रहा था।
मुख्यमंत्री की दृढ़ता और तैयारियों का असर
इन सभी चुनौतियों के बावजूद, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने फैसले पर कायम रहे। सोमवार की सुबह भारी बारिश के बीच ही मंत्री, विधायक और अधिकारी गैरसैंण के लिए रवाना हो गए। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी एक दिन पहले ही भराड़ीसैंण पहुंच चुकी थीं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, संसदीय कार्यमंत्री सुबोध उनियाल, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य सहित कई अन्य मंत्री और विधायक भी सत्र के लिए गैरसैंण पहुंचे।
सोमवार दोपहर बाद मौसम खुलने और धूप निकलने से गैरसैंण जा रहे अधिकारियों और कर्मचारियों को थोड़ी राहत मिली। हालांकि, भराड़ीसैंण में अभी भी धुंध छाई हुई है, जिससे हल्की ठंड महसूस हो रही है। यह सत्र न केवल विधायी कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सरकार की उस प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है कि उत्तराखंड की राजधानी पहाड़ में ही रहेगी।