बेबाक चर्चा
सिरसी। यह कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि अदम्य साहस और दृढ़ इच्छाशक्ति की है, जिसने पानी की किल्लत से जूझ रहे एक पूरे गांव की किस्मत बदल दी। कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले की **गौरी एस. नाइक** ने साबित कर दिया कि अगर जज्बा हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। 51 साल की उम्र में इस महिला ने अकेले ही 60 फीट गहरा कुआं खोद डाला और अपने गांव के लिए पानी की व्यवस्था कर दी। गांव के लोग उन्हें प्यार से **’लेडी भागीरथी’** कहने लगे हैं।
### **गर्मी ने दिया सबक, खुद बनीं मजदूर**
गौरी की कहानी संघर्ष और प्रेरणा की मिसाल है। वह केवल एक मां नहीं, बल्कि एक दिहाड़ी मजदूर भी हैं। अपने घर के आसपास उन्होंने 150 सुपारी के पेड़, 15 नारियल के पेड़ और केले के पौधे लगाए थे। जब गर्मी में पेड़ों को पानी की जरूरत हुई और गांव में पानी की कमी दिखी, तो उन्होंने खुद फावड़ा उठाने का फैसला किया। गांव के लोग मजदूरों का खर्च नहीं उठा सकते थे, लेकिन गौरी ने हालात से हार मानने के बजाय खुद मजदूर बनने का रास्ता चुना।
### **तीन महीने तक चली ‘असंभव’ मेहनत**
गौरी ने अकेले ही यह चुनौती स्वीकार की। उन्होंने तीन महीने तक लगातार हर दिन पांच से छह घंटे तक जमीन खोदी। बिना किसी पुरुष सहयोग के, उन्होंने अपने हाथों से 60 फीट गहरा कुआं खोद डाला। यह वही काम है जिसे लोग अक्सर मशीनों और भारी-भरकम मजदूरों के बिना असंभव मानते हैं। लेकिन गौरी ने अपनी इच्छाशक्ति और मेहनत से इसे संभव कर दिखाया।
### **’लेडी भागीरथी’ का चमत्कार**
जब 60 फीट की खुदाई के बाद उन्हें 7 फीट पानी मिला, तो यह पूरे गांव के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। गौरी ने न सिर्फ अपने घर की प्यास बुझाई, बल्कि पूरे गांव के लिए आशा और जीवन का प्रतीक बन गईं। उनकी इस हिम्मत और लगन को देखकर ही गांववालों ने उन्हें “लेडी भागीरथी” का नाम दिया, ठीक वैसे ही जैसे राजा भगीरथ ने अपनी तपस्या से गंगा को धरती पर लाया था। गौरी की कहानी हर उस भारतीय महिला के लिए एक प्रेरणा है जो अक्सर सोचती है कि वह अकेले क्या कर सकती है।