बेबाक चर्चा
देहरादून। उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में शिक्षकों की प्रमोशन, नियमितीकरण और भर्ती को लेकर एक बड़ा घोटाला सामने आया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने 2014, 2015 और 2018 में नियमों को दरकिनार कर कई अस्थायी शिक्षकों को ऊंचे वेतनमान और पदों पर प्रमोट कर दिया, जिससे सरकारी खजाने को हर महीने लाखों और सालाना करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है।
विभिन्न दस्तावेजों और ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इन प्रमोशनों के लिए CAS (Career Advancement Scheme) के नाम का दुरुपयोग हुआ। हालांकि CAS स्कीम यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) के बनाए नियमों के तहत लागू होती है और प्रमोशन के लिए API स्कोर, न्यूनतम योग्यता और अनुभव अनिवार्य है, लेकिन विश्वविद्यालय ने बिना कोई रिक्त पद निकाले और बिना आवश्यक योग्यता पूरी कराए सीधे ही प्रमोशन कर दिए।
नियमों को ताक पर रखकर प्रमोशन?विश्वविद्यालय में 2014 और 2015 में शिक्षकों की प्रमोशन कर दी गई, जबकि उस वक्त तक विश्वविद्यालय की अधिनियमावली ही अधिसूचित नहीं हुई थी।
- प्रमोशन के लिए न आवश्यक रिक्त पद थे, न ही विभागीय चयन समिति (DPC) की बैठक।
- विश्वविद्यालय ने कैरियर एडवांसमेंट स्कीम (CAS) का हवाला देकर प्रमोशन कर दिए लेकिन CAS लागू करने का कोई आधिकारिक शासनादेश तक नहीं था।
- कई अस्थायी शिक्षकों को भी नियमों के विपरीत स्थाई कर दिया गया।
लाखों की अतिरिक्त तनख्वाह?इन अवैध प्रमोशनों से शिक्षकों को उच्च वेतनमान में सीधी छलांग मिली। उदाहरण के तौर पर, 6000 ग्रेड-पे वाले असिस्टेंट प्रोफेसर सीधे 9000 ग्रेड-पे पर पहुँच गए। केवल एक प्रमोटेड शिक्षक को सालाना दो से तीन लाख रुपये अतिरिक्त वेतन मिलने का अनुमान है। ऐसे शिक्षकों की संख्या दर्जनों में होने से हर साल करोड़ों का अतिरिक्त भार सरकारी खजाने पर पड़ा।
चार शिक्षकों को विशेष लाभ? 2015 में चार शिक्षकों — डॉ. प्रमोद जोशी, डॉ. शशिकर कुमार, डॉ. माखन लाल, और डॉ. जयफॉयल ठाकुर — को नियमों के विरुद्ध प्रमोट कर दिया गया। ये सभी 2015 में अस्थायी सेवा में थे और 2018 में दोबारा प्रमोट कर सीधे सीनियर स्केल पर पहुंचा दिए गए।
फर्जी अनुभव और API स्कोर की अनदेखी? प्रमोशन के लिए जिन दस्तावेजों की ज़रूरत थी, जैसे API स्कोर, PHD की डिग्री, शोध पत्र, वो या तो ग़ायब थे या पूरी तरह फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर प्रमोशन कर दिए गए। ऑडिट में पाया गया कि न तो विभागीय वरिष्ठता सूची बनाई गई, न ही रिक्तियों का कोई चार्ट जारी हुआ।
विश्वविद्यालय प्रशासन पर घोटालेबाजों को बचाने का आरोप?ऑडिट रिपोर्ट में लिखा गया है कि जब-जब घोटाले को लेकर सवाल उठते हैं, विश्वविद्यालय प्रशासन उसे दबा देता है। वरिष्ठ अधिकारी घोटालेबाजों की ओरदारी करते हैं और कोई कठोर कार्रवाई नहीं करते। यहां तक कि शासन के विशेष ऑडिट आदेश को भी लटकाया जा रहा है ताकि सारा मामला ठंडे बस्ते में चला जाए।
दोहरा लाभ उठाने वाले शिक्षक?तीन शिक्षकों को ACP (Assured Career Progression) योजना के तहत भी उच्च वेतनमान का लाभ मिल रहा है, जबकि इन्हें CAS से भी प्रमोशन दिया गया। यानी एक ही व्यक्ति को दो-दो योजनाओं का लाभ दिया गया। इससे सरकारी खजाने पर और बड़ा भार पड़ा है।
2016 में रोका गया था रिजर्वेशन प्रोसेस, फिर भी हुई भर्तियां? 2016 में विश्वविद्यालय ने विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए रोस्टर जारी किया था, लेकिन विधानसभा चुनावों के चलते प्रक्रिया रोक दी गई थी। बावजूद इसके, 2017 में उसी रोस्टर को बदलकर नई भर्तियां कर दी गईं। भर्ती प्रक्रिया में अयोग्य लोगों का चयन हुआ और आरक्षण नीति का उल्लंघन हुआ।
अदालत में मामला
अब घोटाले के खिलाफ हाईकोर्ट में मुकदमेबाजी चल रही है। कई प्रमोटेड शिक्षकों की पेंशन रोक दी गई है और उन्हें प्रोविजनल पेंशन दी जा रही है। विश्वविद्यालय के अधिकारी कोर्ट में निजी वकीलों के जरिए खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।