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उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के बीच ऑपरेशन कालनेमी – दो दिनों में 45 ढोंगी साधु गिरफ्तार

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उत्तराखंड में शुक्रवार से शुरू हुई कांवड़ यात्रा में अब तक करीब 10 लाख 90 हजार शिवभक्त गंगाजल लेकर अपने-अपने गंतव्यों की ओर प्रस्थान कर चुके हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश समेत तमाम कांवड़ मार्गों पर भारी भीड़ के बीच कानून-व्यवस्था बनाए रखने और श्रद्धालुओं को ठगों से बचाने के लिए पुलिस प्रशासन चौकस है।

इसी क्रम में, ऑपरेशन कालनेमी के तहत शनिवार को पुलिस ने प्रदेशभर में कुल 45 ढोंगी साधुओं को गिरफ्तार किया। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) परमेंद्र डोभाल ने बताया कि पकड़े गए व्यक्तियों में तीन मुस्लिम व्यक्ति गेरुआ वस्त्र धारण किए हुए थे, जबकि एक-एक आरोपी सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल), रीवा (मध्य प्रदेश), हरियाणा और पौड़ी (उत्तराखंड) जिलों से हैं। बाकी सभी आरोपी स्थानीय निवासी हैं, जो सिर्फ धनोपार्जन के उद्देश्य से साधु का भेष धरकर श्रद्धालुओं को ठगने का काम कर रहे थे।

गिरफ्तार व्यक्तियों पर धोखाधड़ी, आस्था का शोषण और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए हैं। पुलिस का कहना है कि आगे भी यह अभियान निरंतर जारी रहेगा।

कुल आंकड़ा – ऑपरेशन कालनेमी के तहत अब तक कितने गिरफ्तार?

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, पूरे उत्तराखंड में अब तक ऑपरेशन कालनेमी के अंतर्गत लगभग 200 ऐसे ढोंगी साधु पकड़े जा चुके हैं। हालांकि यह संख्या बढ़ भी सकती है क्योंकि अभियान लगातार जारी है।

धार्मिक और सामाजिक असर – विश्लेषण

  • धार्मिक आस्था पर क्या असर पड़ेगा?
  • ऑपरेशन कालनेमी की कार्रवाई धार्मिक आस्था पर चोट नहीं बल्कि उसे सुरक्षा देने वाली मानी जा रही है। क्योंकि असली साधु-संतों की प्रतिष्ठा इन फर्जी लोगों की वजह से धूमिल होती है। इन ढोंगियों की गिरफ्तारी से जनता को संदेश गया है कि प्रशासन आस्था की आड़ में ठगी करने वालों को बख्शेगा नहीं।
  • लोगों में बढ़ेगा अविश्वास?
  • हां, अल्पकालिक असर यह जरूर होगा कि लोग हर गेरुआ वस्त्रधारी पर संदेह की नजर डाल सकते हैं। लेकिन दीर्घकाल में यह कदम लोगों को अधिक जागरूक और सतर्क बनाएगा कि वे किसी भी साधु या बाबा को आंख मूंदकर न मानें, और पहले उसकी सच्चाई जांच लें।
  • साम्प्रदायिक कोण क्यों आया?
  • तीन मुस्लिम व्यक्तियों का गेरुआ वस्त्र में पकड़ा जाना साम्प्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील मुद्दा हो सकता है। हालांकि प्रशासन ने इसे केवल ठगी का मामला बताया है, न कि साम्प्रदायिक साजिश। बावजूद इसके, सोशल मीडिया या कुछ संगठनों द्वारा इसे तूल देने की आशंका है। इसलिए प्रशासन को बेहद संयम और पारदर्शिता से काम करना होगा।

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